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गुरुवार, 6 जुलाई 2017

मैं इस उम्मीद में डूबा कि तू बचा लेगा - Mai Is Umeed Me.....

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मैं इस उम्मीद में डूबा कि तू बचा लेगा

अब इसके बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा

ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता “वसीम”
मैं जानता हूँ वह जब चाहेगा बुला लेगा

Waseem Barelvi

वसीम बरेलवी 


बुधवार, 5 जुलाई 2017

बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ - Besan Ki Sondhi Roti Par....

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बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ 


याद आती है चौका-बासन 
चिमटा फुकनी जैसी माँ 

बाँस की खुर्री खाट के ऊपर 
हर आहट पर कान धरे 

आधी सोई आधी जागी 
थकी दोपहरी जैसी माँ 

चिड़ियों के चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली 

मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती 
घर की कुंडी जैसी माँ 

बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन 
थोड़ी थोड़ी सी सब में 

दिन भर इक रस्सी के ऊपर 
चलती नटनी जैसी माँ 

बाँट के अपना चेहरा, माथा, 
आँखें जाने कहाँ गई 

फटे पुराने इक अलबम में 
चंचल लड़की जैसी माँ

Nida Faazli

निदा फ़ाज़ली 

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

आज फिर आप की कमी सी है - Aaj Phir Aapki Kami Si hai

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शाम से आँख में नमी सी है 

आज फिर आप की कमी सी है 



दफ़्न कर दो हमें कि साँस मिले 
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है 


वक़्त रहता नहीं कहीं थमकर 
इस की आदत भी आदमी सी है 


कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी 
एक तस्लीम लाज़मी सी है 

Sampurna Singh Kalra 'Gulzar'

संपूर्ण सिंह कालरा 'गुलज़ार'