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रविवार, 29 मई 2016

नर हो न निराश करो मन को - Nar Ho Na Niraash Karo Man ko

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नर हो न निराश करो मन को

कुछ काम करो कुछ काम करो


जग में रहके निज नाम करो

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो

समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो 

कुछ तो उपयुक्त करो तन को

नर हो न निराश करो मन को ।

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को

नर हो न निराश करो मन को ।

-मैथिलीशरण गुप्त 

- Maithilisharan Gupt

सोमवार, 23 मई 2016

दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के - Dono Jaahan Teri Mohabbat...

Hindi Creators


दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के 

वो जा रहा है कोई शबे-ग़म गुज़ार के 

वीराँ है मैकदा ख़ुमो-सागर उदास है 
तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के 

इक फ़ुर्सते-गुनाह मिली वो भी चार दिन 
देखें हैं हमने हौसले परवरदिगार के 

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया 
तुम से भी दिलफरेब हैं ग़म रोज़गार के 

भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वो आज 'फ़ैज़'
मत पूछ वलवले दिले-नाकर्दाकार के
-Faiz Ahmed 'Faiz'
- फैज़ अहमद 'फैज़'

बुधवार, 18 मई 2016

रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है - Raat Chupchap ...Gulzar

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रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है 

रात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहीं 

कांच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता है 
ख़ाली-ख़ाली कोई बजरा सा बहा जाता है

चाँद की किरणों में वो रोज़ सा रेशम भी नहीं 
चाँद की चिकनी डली है कि घुली जाती है

और सन्नाटों की इक धूल सी उड़ी जाती है 
काश इक बार कभी नींद से उठकर तुम भी 

हिज्र की रातों में ये देखो तो क्या होता है

- संपूर्ण सिंह कालरा 'गुलज़ार'

-Sampoorna Singh Kalra 'Gulzar'

मंगलवार, 3 मई 2016

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे - Yah Kadamb Ka Ped Agar Maa...

Hindi Creators

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे


मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे

ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता

उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता



सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती
मुझे देखने काम छोड़कर तुम बाहर तक आती



तुमको आता देख बाँसुरी रख मैं चुप हो जाता
पत्तों मे छिपकर धीरे से फिर बाँसुरी बजाता



गुस्सा होकर मुझे डाटती, कहती "नीचे आजा"
पर जब मैं ना उतरता, हँसकर कहती, "मुन्ना राजा"



"नीचे उतरो मेरे भईया तुंझे मिठाई दूँगी,
नये खिलौने, माखन-मिसरी, दूध मलाई दूँगी"




बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता

तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता

तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं

इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे

-Subhadra Kumari Chauhan

सोमवार, 2 मई 2016

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद - Raat yo Kahne Laga Mujhse...

Hindi Creators

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद


आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है

उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता
और फिर बेचैन हो जगता, सोता है


जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ

मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते


आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का

आज बनता और कल फिर फूट जाता है
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है


मैं बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली

देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू


मैं वह जो स्वप्न पर केवल सही करते

आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ


मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी

कल्पना की जीभ में भी धार होती है
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है


स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे

रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते रहे हैं वे

-Ramdhari Singh 'Dinkar'
Ramdhari Singh 'Dinkar'

-रामधारी सिंह 'दिनकर'