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सोमवार, 4 अप्रैल 2016

सरफ़रोशी की तमन्ना - Sarfaroshi Ki Tamanna

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है


ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,

देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है


ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,

अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है

वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,

हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है


खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,

आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है


है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,

और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.

ख़ून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्क़िल में है


हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,

सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.

और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है.


हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,

जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.

ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है


यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,

क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है.


दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,

होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.

दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है.


वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून

क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है.


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में

                                                                                                     -  रामप्रसाद  'बिस्मिल' (Ramprasad 'Bismil')