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बुधवार, 6 अप्रैल 2016

मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ - Meri Khawahish hai ki main phir se

मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ

कम-से-बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर
ऐसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ

सोचता हूँ तो छलक उठती हैं मेरी आँखें
तेरे बारे में न सोचूँ तो अकेला हो जाऊँ

शायरी कुछ भी हो रुस्वा नहीं होने देती
मैं सियासत में चला जाऊँ तो नंगा हो जाऊँ.


जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है

माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है

रोज़ मैं अपने लहू से उसे ख़त लिखता हूँ
रोज़ उँगली मेरी तेज़ाब में आ जाती है


ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया

माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया

अभी ज़िंदा है माँ मेरी,मुझे कुछ भी नहीं होगा 
मैं जब घर से निकलता  हूँ, दुआ भी साथ चलती है. 

                                                                                   - मुनव्वर राना