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शनिवार, 30 अप्रैल 2016

रवींद्रनाथ टैगोर : चल अकेला - Ravibndranath Tagore : Chal Akela

Hindi Creators


तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,


चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,

जब सबके मुंह पे पाश

ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,

हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!

तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,

मनका गाना गूंज तू अकेला!

जब हर कोई वापस जाय

ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय

कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय

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आया मैं चुनने को फूल यहाँ वन में

जाने था क्या मेरे मन में

यह तो, पर नहीं, फूल चुनना

जानूँ ना मन ने क्या शुरू किया बुनना

जल मेरी आँखों से छलका,

उमड़ उठा कुछ तो इस मन में ।

-Ravindra Nath Tagore


-रवींद्रनाथ टैगोर 

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

यह लघु सरिता का बहता जल - yah Laghu Sarita Ka Bahta Jal

Hindi Creators

यह लघु सरिता का बहता जल
कितना शीतल, कितना निर्मल
हिमगिरि के हिम से निकल निकल,
यह निर्मल दूध सा हिम का जल,
कर-कर निनाद कल-कल छल-छल,
तन का चंचल मन का विह्वल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।
उँचे शिखरों से उतर-उतर,
गिर-गिर, गिरि की चट्टानों पर,
कंकड़-कंकड़ पैदल चलकर,
दिन भर, रजनी भर, जीवन भर,
धोता वसुधा का अन्तस्तल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।
हिम के पत्थर वो पिघल पिघल,
बन गये धरा का वारि विमल,
सुख पाता जिससे पथिक विकल
पी-पी कर अंजलि भर मृदुजल,
नित जलकर भी कितना शीतल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।
कितना कोमल, कितना वत्सल,
रे जननी का वह अन्तस्तल,
जिसका यह शीतल करुणा जल,
बहता रहता युग-युग अविरल,
गंगा, यमुना, सरयू निर्मल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।

-गोपाल सिंह नेपाली 

-Gopal Singh Nepali

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

ज़ुल्फ़-अँगड़ाई-तबस्सुम-चाँद-आईना-गुलाब - Julf-Angdai-Tabassum......

Hindi Creators



ज़ुल्फ़-अँगड़ाई-तबस्सुम-चाँद-आईना-गुलाब
भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इनका शबाब 

पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी 
इस अहद में किसको फुरसत है पढ़े दिल की क़िताब 

इस सदी की तिश्नगी का ज़ख़्म होंठों पर लिए 
बेयक़ीनी के सफ़र में ज़िंदगी है इक अजाब 

डाल पर मज़हब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल 
सभ्यता रजनीश के हम्माम में है बेनक़ाब 

चार दिन फुटपाथ के साए में रहकर देखिए 
डूबना आसान है आँखों के सागर में जनाब
-अदम गोंडवी
Adam Gondvi
-Adam Gondvi

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना - Ab Agar Aao To...

Hindi Creators

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ अहसान जताने के लिए मत आना
मैंने पलकों पे तमन्नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्मीद की सौ शम्मे जला रखी हैं
ये हँसीं शम्मे बुझाने के लिए मत आना
 प्यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़बीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
अब तुम आना जो तुम्हें मुझसे मुहब्बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्म निभाने के लिए मत आना
-जावेद अख़्तर 
JAVED AKHTAR

-Javed Akhtar

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

आपकी याद आती रही रात-भर - Aapki Yaad Aati Rahi Raatbhar

Hindi Creators



आपकी याद आती रही रात-भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात-भर


गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात-भर



कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात-भर



फिर सबा साय-ए-शाख़े-गुल के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात-भर



जो न आया उसे कोई ज़ंजीरे-दर
हर सदा पर बुलाती रही रात-भर



एक उमीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात-भर

-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Faiz Ahmed Faiz

-Faiz Ahmed Faiz

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

तुम भी जानम! कमाल करते हो - Tum bhi Jaanam Kamal Karte Ho

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दुःख देकर सवाल करते हो,

तुम भी जानम! कमाल करते हो। 


देख कर पूछ लिया हाल मेरा,
चलो कुछ तो ख्याल करते हो। 

शहर-ए दिल में ये उदासियाँ कैसी,
ये भी मुझसे सवाल करते हो। 

मरना चाहें तो मर नहीं सकते,
तुम भी जीना मुहाल करते हो। 

अब किस-किस की मिसाल दूँ तुम को,
हर सितम बे-मिसाल करते हो।

-Mirza Ghalib
Mirza Ghalib

-मिर्ज़ा ग़ालिब 

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

मुक्ति की आकांक्षा - Mukti Ki Aakansha

Hindi Creators


चिडि़या को लाख समझाओ

कि पिंजड़े के बाहर
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
वहाँ हवा में उन्हें
अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है,
यहाँ चुग्गा मोटा है।
बाहर बहेलिए का डर है,
यहाँ निर्द्वंद्व कंठ-स्व र है।
फिर भी चिडि़या 
मुक्ति का गाना गाएगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,
पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,
हरसूँ ज़ोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।

-Sarveshwar Dayal Saxena
Sarveshwar Dayal Saxena
-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना 

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की - Wo Shokh Nazar Sawali Si Ek Ladki

Hindi Creators

वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की
जो रोज़ मेरी गली से गुज़र के जाती है
सुना है
वो किसी लड़के से प्यार करती है
बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है
न कोई मेल न कोई लगाव है लेकिन न जाने क्यूँ
बस उसी वक़्त जब वो आती है
कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है
मुझे
एक अजनबी की ज़रूरत हो गई है मुझे
मेरे बरांडे के आगे यह फूस का छप्पर
गली के मोड पे खडा हुआ सा
एक पत्थर
वो एक झुकती हुई बदनुमा सी नीम की शाख
और उस पे जंगली कबूतर के घोंसले का निशाँ
यह सारी चीजें कि जैसे मुझी में शामिल हैं
मेरे दुखों में मेरी हर खुशी में शामिल हैं
मैं चाहता हूँ कि वो भी यूं ही गुज़रती रहे
अदा-ओ-नाज़ से लड़के को प्यार करती रहे

-Nida Fazli

Nida Fazali

-निदा फाज़ली 

मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती - Koshish Karne Walo Ki Kabhi...

Hindi Creators


लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्ही चींटीं जब दाना ले कर चढ़ती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगॊं मे साहस भरता है
चढ़ कर गिरना, गिर कर चढ़ना न अखरता है
मेहनत उसकी बेकार नहीं हर बार होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा-जा कर खाली हाथ लौट कर आता है
मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गयी देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो नींद-चैन को त्यागो तुम
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किए बिना ही जय-जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

- Harivansh Rai Bachchan

-हरिवंश राय बच्चन 

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

मैं नीर भरी दुःख की बदली - Main Neer Bhari Dukh Ki Badli

Hindi Creators

मैं नीर भरी दुःख की बदली,
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनो में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झनी मचली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !

मेरा पग पग संगीत भरा,
श्वांसों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !

मैं क्षितिज भृकुटी पर घिर धूमिल,
चिंता का भर बनी अविरल,
रज कण पर जल कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !

पथ न मलिन करते आना
पद चिन्ह न दे जाते आना
सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिहरन हो अंत खिली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !

विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना
परिचय इतना इतिहास यही
उमटी कल थी मिट आज चली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !

- Mahadevi Verma

-महादेवी वर्मा 

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गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में - Lagta Nahi Hai Dil Mera Ujde Dayar Me

Hindi Creators


लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में 
                                                    किस की बनी है आलम--नापायेदार में



कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
                                                  इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में


उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन

                                                   दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में


कितना है बदनसीब "ज़फ़र" दफ़न के लिये

                                                   दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में

                                      - Bahadur Shah Zafar
                                       - बहादुर शाह ज़फर 
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बुधवार, 13 अप्रैल 2016

चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ - Chahta Hu Desh Ki Dharti...

Hindi Creators

मन समर्पित, तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ

मॉं तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल में जब भी
कर दया स्वीकार लेना यह समर्पण
गान अर्पित, प्राण अर्पित
रक्त का कण-कण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ

मॉंज दो तलवार को, लाओ देरी
बॉंध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी
शीश पर आशीष की छाया धनेरी
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित
आयु का क्षण-क्षण समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ

तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो
गॉंव मेरी, द्वार-घर मेरी, ऑंगन, क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे-दो
और बाऍं हाथ में ध्वज को थमा दो
सुमन अर्पित, चमन अर्पित
नीड़ का तृण-तृण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरतीतुझे कुछ और भी दूँ

- Ram Avtar Tyagi
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