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सोमवार, 2 मई 2016

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद - Raat yo Kahne Laga Mujhse...

Hindi Creators

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद


आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है

उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता
और फिर बेचैन हो जगता, सोता है


जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ

मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते


आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का

आज बनता और कल फिर फूट जाता है
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है


मैं बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली

देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू


मैं वह जो स्वप्न पर केवल सही करते

आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ


मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी

कल्पना की जीभ में भी धार होती है
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है


स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे

रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते रहे हैं वे

-Ramdhari Singh 'Dinkar'
Ramdhari Singh 'Dinkar'

-रामधारी सिंह 'दिनकर'