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गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ - Ranjish Hi Sahi Dil Ko....- Ahmad Faraz

Hindi Creators




रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ

आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

पहले से मरासिम* न सही, फिर भी कभी तो
रस्मों-रहे* दुनिया ही निभाने के लिए आ
(मरासिम – प्रेम-व्यहवार, रस्मों-रहे – सामाजिक शिष्टता)
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत* का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
(पिन्दार-ए-मोहब्बत – मोहब्बत का गर्व)
इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया* से भी महरूम*
ऐ राहत-ए-जाँ* मुझको रुलाने के लिए आ
(लज़्ज़त-ए-गिरिया – रोने का स्वाद, महरूम – वंचित होना, राहत-ए-जाँ – जीने का जीने का आधार)
अब तक दिल-ए-ख़ुशफ़हम* को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आखिरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ
(दिल-ए-ख़ुशफ़हम – किसी की ओर से अच्छा सोचने वाला मन)
माना की मुहब्बत का छिपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ

जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
-Ahmad Faraz
-अहमद फ़राज़ 

गुरुवार, 1 सितंबर 2016

इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा - Itna Mat Chaho Use, Wo Bewafa Ho Jayega

Hindi Creators

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा

इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा


हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा

कितनी सच्चाई से मुझसे, ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा

मैं खुदा का नाम लेकर, पी रहा हूं दोस्तों
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा

सब उसी के हैं, हवा, ख़ुशबू, ज़मीन-ओ-आसमां
मैं जहां भी जाऊंगा, उसको पता हो जाएगा
-BASHIR BADRA

-बशीर बद्र 

बुधवार, 10 अगस्त 2016

कलम, आज उनकी जय बोल - Kalam Aaj Unki Jay Bol

Hindi Creators

जला अस्थियां बारी-बारी

चिटकाई जिनमें चिंगारी,

जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर

लिए बिना गर्दन का मोल।

                                 कलम, आज उनकी जय बोल



जो अगणित लघु दीप हमारे,
तूफ़ानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन,
मांगा नहीं स्नेह मुँह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

पीकर जिनकी लाल शिखाएं,
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी,
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

अंधा चकाचौंध का मारा,
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के,
सूर्य, चन्द्र, भूगोल, खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

-Ramdhari Singh 'Dinkar'

-रामधारी  सिंह 'दिनकर' 

बुधवार, 3 अगस्त 2016

सखि, वे मुझसे कहकर जाते - Sakhi, We Mujhse Kahkar Jaate

Hindi Creators

सखि, वे मुझसे कहकर जाते

कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?

मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना

जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में -
क्षात्र-धर्म के नाते 
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

हु‌आ न यह भी भाग्य अभागा

किसपर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते ?
गये तरस ही खाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,

दुखी न हों इस जन के दुख से,

उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से ?

आज अधिक वे भाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

गये, लौट भी वे आवेंगे,
कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे,

रोते प्राण उन्हें पावेंगे,
पर क्या गाते-गाते ?
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

-Maithilisharan Gupt

-मैथिलिशरण गुप्त 

सोमवार, 1 अगस्त 2016

सब के कहने से इरादा नहीं बदला जाता - Sab Ke Kahne Se Irada Nahi Badla Jaata

Hindi Creators

                          सब के कहने से इरादा नहीं बदला जाता

                              हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता

हम तो शायर हैं सियासत नहीं आती हमको
हम से मुंह देखकर लहजा नहीं बदला जाता
हम फकीरों को फकीरी का नशा रहता हैं
वरना क्या शहर में शजरा नहीं बदला जाता
ऐसा लगता हैं के वो भूल गया है हमको
अब कभी खिडकी का पर्दा नहीं बदला जाता
जब रुलाया हैं तो हसने पर ना मजबूर कर
रोज बीमार का नुस्खा नहीं बदला जाता
गम से फुर्सत ही कहाँ है के तुझे याद कर
इतनी लाशें हैं तो कान्धा नहीं बदला जाता
उम्र एक तल्ख़ हकीकत हैं दोस्तों फिर भी
जितने तुम बदले हो उतना नहीं बदला जाता
-मुन्नवर राणा 

शनिवार, 30 जुलाई 2016

क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं - Kareeb Un Ke Aane Ke Din Aa Rahe Hain

Hindi Creators


नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं

क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं


जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है
सब उनको सुनाने के दिन आ रहे हैं



अभी से दिल-ओ-जाँ सर-ए-राह रख दो
केः लुटने-लुटाने के दिन आ रहे हैं



टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं



सबा फिर हमें पूछती फिर रही है
चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं



चलो 'फ़ैज़' फिर से कहीं दिल लगायें
सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं

-Faiz Ahmed 'Faiz'

-फैज़ अहमद 'फैज़'

उसकी कत्थई आँखों में हैं - Uski Katthai Ankho Me Hain

Hindi Creators


उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर मंतर सब


चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब


जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
जाने मैं किस दिन डूबूँगा, फिक्रें करते हैं
दरिया वरीया,  कश्ती वस्ती, लंगर वंगर सब
इश्क़ विश्क़ के सारे नुस्खे, मुझसे सीखते हैं
सागर वागर, मंज़र वंजर, जोहर वोहर सब
तुलसी ने जो लिखा अब कुछ बदला बदला हैं
रावण वावण, लंका वंका, बन्दर वंदर  सब
-Rahat Indori

-राहत इंदौरी 

शुक्रवार, 17 जून 2016

हिज्र की शब है और उजाला है - Hijra Ki Shab Hai Aur Ujala Hai

Hindi Creators


हिज्र की शब है और उजाला है 


क्या तसव्वुर भी लुटने वाला है 

ग़म तो है ऐन ज़िन्दगी लेकिन 
ग़मगुसारों ने मार डाला है 

इश्क़ मज़बूर-ओ-नामुराद सही 
फिर भी ज़ालिम का बोल-बाला है 

देख कर बर्क़ की परेशानी 
आशियाँ ख़ुद ही फूँक डाला है 

कितने अश्कों को कितनी आहों को 
इक तबस्सुम में उसने ढाला है 

तेरी बातों को मैंने ऐ वाइज़
एहतरामन हँसी में टाला है 

मौत आए तो दिन फिरें शायद 
ज़िन्दगी ने तो मार डाला है 

शेर नज़्में शगुफ़्तगी मस्ती 
ग़म का जो रूप है निराला है 

लग़्ज़िशें मुस्कुराई हैं क्या-क्या 
होश ने जब मुझे सँभाला है 

दम अँधेरे में घुट रहा है "ख़ुमार" 
और चारों तरफ उजाला है
-ख़ुमार बाराबंकवी

शनिवार, 4 जून 2016

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे - Zindagi Se Yahi Gila Hai Mujhe

Hindi Creators





ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे 

तू बहुत देर से मिला है मुझे

हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं 
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल 
हार जाने का हौसला है मुझे

लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ 
कत्ल होने का हौसला है मुझे

दिल धडकता नहीं सुलगता है 
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे

कौन जाने कि चाहतो में "फ़राज़ "
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे

-Ahmad Faraz

-अहमद फ़राज़ 

रविवार, 29 मई 2016

नर हो न निराश करो मन को - Nar Ho Na Niraash Karo Man ko

Hindi Creators



नर हो न निराश करो मन को

कुछ काम करो कुछ काम करो


जग में रहके निज नाम करो

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो

समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो 

कुछ तो उपयुक्त करो तन को

नर हो न निराश करो मन को ।

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को

नर हो न निराश करो मन को ।

-मैथिलीशरण गुप्त 

- Maithilisharan Gupt

सोमवार, 23 मई 2016

दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के - Dono Jaahan Teri Mohabbat...

Hindi Creators


दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के 

वो जा रहा है कोई शबे-ग़म गुज़ार के 

वीराँ है मैकदा ख़ुमो-सागर उदास है 
तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के 

इक फ़ुर्सते-गुनाह मिली वो भी चार दिन 
देखें हैं हमने हौसले परवरदिगार के 

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया 
तुम से भी दिलफरेब हैं ग़म रोज़गार के 

भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वो आज 'फ़ैज़'
मत पूछ वलवले दिले-नाकर्दाकार के
-Faiz Ahmed 'Faiz'
- फैज़ अहमद 'फैज़'

बुधवार, 18 मई 2016

रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है - Raat Chupchap ...Gulzar

Hindi Creators

रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है 

रात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहीं 

कांच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता है 
ख़ाली-ख़ाली कोई बजरा सा बहा जाता है

चाँद की किरणों में वो रोज़ सा रेशम भी नहीं 
चाँद की चिकनी डली है कि घुली जाती है

और सन्नाटों की इक धूल सी उड़ी जाती है 
काश इक बार कभी नींद से उठकर तुम भी 

हिज्र की रातों में ये देखो तो क्या होता है

- संपूर्ण सिंह कालरा 'गुलज़ार'

-Sampoorna Singh Kalra 'Gulzar'

मंगलवार, 3 मई 2016

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे - Yah Kadamb Ka Ped Agar Maa...

Hindi Creators

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे


मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे

ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता

उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता



सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती
मुझे देखने काम छोड़कर तुम बाहर तक आती



तुमको आता देख बाँसुरी रख मैं चुप हो जाता
पत्तों मे छिपकर धीरे से फिर बाँसुरी बजाता



गुस्सा होकर मुझे डाटती, कहती "नीचे आजा"
पर जब मैं ना उतरता, हँसकर कहती, "मुन्ना राजा"



"नीचे उतरो मेरे भईया तुंझे मिठाई दूँगी,
नये खिलौने, माखन-मिसरी, दूध मलाई दूँगी"




बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता

तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता

तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं

इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे

-Subhadra Kumari Chauhan